तुम गूँगे हो,फिर क्यों गा रहे हो

तुम गूँगे हो,फिर क्यों गा रहे हो

Azad-Poem,आज़ाद की कविता
Azad-Poem








दुःखो का सागर, शब्दो से बहा रहे हो
अरे तुम गूँगे हो,फिर क्यों गा रहे हो
इतना सस्ता नही है इस दुःख को बयां करना
जिसकी तुम यहाँ गंगा बहा रहे हो
हमारे साथ चलो
तुम्हे मिलवाएंगे एक एंकर से
ढेरो पैसे मिलेंगे
यहाँ क्यों बिना वजह चिल्ला रहे हो
बस हमको अच्छा बताना
ओर खुशी से चिल्लाना
भ्रष्टाचार वाली बातों पर
गूँगे और बहरे बन जाना
कपड़े और खाना भी मिलेगा
अब तो आ रहे हो?
साहब,'लगता है अभी भी बहका रहे हो'
अब आप हमसे भी झूठ  बुलवा रहे हो
तुम्हारे साथ न आना हमारा ईमान है
यहाँ हर कोई न झूठा न मक्कार है
यहाँ मन की नही रोटी,कपड़े व मकान की बात है
अरे क्यों गरीबो के गाने गुनगुना रहे हो
दुःखो का सागर शब्दों से बहा रहे हो
अरे तुम गूँगे हो फिर क्यों गा रहे हो
                               ✍

                            आज़ाद

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